कुमकुम और भोजपुरी सिनेमा

कुमकुम और भोजपुरी सिनेमा

कुमकुम और भोजपुरी सिनेमा 800 600 Dhananjay Kumar

अभिनेत्री कुमकुम का निधन भोजपुरी सिनेमा के जीवित इतिहास के अध्याय का समाप्त हो जाना है !

धनंजय कुमार
“दिखने में तो आदमी ही हूँ, लेकिन मानवगत कुछ कमियाँ मुझमें भी हैं. उनपर विजय पाना चाहता हूँ”
Visit his Website : hamaregaon.blogspot.com


कुमकुम भोजपुरी सिनेमा की पहली फिल्म ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ की नायिका थीं. मैं कहूंगा सिर्फ फिल्म की नायिका नहीं थीं, उस समय की सयान हो रही बेटियों का प्रतिनिधि थीं. हमारे बिहार यूपी के समाज में बेटियों की क्या हैसियत थी/है और बेटियों के बाप को उसके ब्याह के लिए कितनी सघन यंत्रणा झेलनी पड़ती थी/है, इसका मज़बूत चित्रण फिल्म की नायिका की गढ़न में था. नजीर हुसैन साहब ने जितनी संजीदगी के साथ बेटी की अंतरपीड़ा को नायिका के चरित्र में समोया था, कुमकुम जी ने उतनी ही संजीदगी के साथ उसे अभिव्यक्त भी किया था. चाहे भाव भंगिमा हो या संवाद संप्रेषणीयता- मानो सचमुच दुखों की मारी कोई घर जबार की सयान बेटी परदे पर उतर आई हो. और परदे पर इतनी जीवन्तता शायद इसलिए भी उतर आ पायी थी कि कुमकुम जी की जड़ बिहार से जुडी थी.

‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ के बाद कुमकुम जी ने एक और फिल्म की “लागी नहीं छूटे राम” यह उनकी और भोजपुरी सिनेमा की भी दूसरी फिल्म थी. टीम लगभग पहली फिल्म वाली ही थी, प्रोड्यूसर बदले थे सिर्फ. प्रोड्यूसर थे रामायण तिवारी, जो हिन्दी सिनेमा के स्थापित विलेन होने के साथ साथ भोजपुरी सिनेमा की शुरुआत चाहने वालों में से भी थे. गंगा मैया में भी रामायण तिवारी जी ने महतवपूर्ण भूमिका निभाई थी.

दोनों फ़िल्मों में पूर्वांचल का वास्तविक चित्रण था और दोनों फिल्मने हिट रहीं. उसके बाद भोजपुरी फिल्मों के निर्माण में हिन्दी सिनेमा के प्रोड्यूसर भी जुड़ने लगे… कई फिल्में शुरू हुई बनीं, लेकिन कुमकुम ने तीसरी कोई फिल्म नहीं की.

याद आ रहे हैं वो अमर गीत जो लोकगीत बन गए पूरे पूर्वांचल के-
काहे बंसुरिया बजवले कि मन तरसवले कि लूट लिहले चैन हमार....
सोनवां के पिजड़ा में बंद भइले हाय राम चिरई के जियबा उदास.

कुमकुम जी को मेरी सादारांजलि – श्रद्धांजलि.
धनंजय कुमार