
युद्ध से मानवता कि रक्षा नहीं हत्या होती है
युद्ध से मानवता कि रक्षा नहीं हत्या होती है https://camaal.in/storages/2025/07/yuddh-1.jpg 800 800 Creativo Camaal https://camaal.in/cores/cache/ls/avatar/5e27d69073e2234a12824edc1b3a9419.jpg?ver=1753681174Advocate Abdul Qaadir Gaur – The Analyst
मानव इतिहास में युद्धों की संख्या, उनके परिणामों, हताहतों की संख्या, विजयी और पराजित पक्षों के साथ व्यवहार, तथा युद्धों के बाद सीमा परिवर्तनों का अध्ययन एक जटिल और व्यापक विषय है। मानव सभ्यता के उद्भव से लेकर वर्तमान समय तक युद्धों की गणना करना और उनके सभी पहलुओं को विस्तार से दर्ज करना असंभव नहीं तो अत्यंत कठिन अवश्य है, क्योंकि प्राचीन काल के कई युद्धों का कोई लिखित विवरण उपलब्ध नहीं है, और आधुनिक युद्धों के आंकड़े भी अक्सर विवादास्पद होते हैं।
मानव इतिहास में युद्धों की संख्या का सटीक आकलन करना चुनौतीपूर्ण है। इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के अनुसार, मानव सभ्यता के प्रारंभ से, जो लगभग 300,000 वर्ष पहले होमो सेपियन्स के उद्भव से माना जाता है, लेकर 2025 तक लाखों छोटे-बड़े युद्ध, संघर्ष, और सैन्य अभियान हुए होंगे। हालांकि, लिखित इतिहास की शुरुआत लगभग 3000 ईसा पूर्व सुमेरी सभ्यता से मानी जाती है, इसलिए अधिकांश जानकारी उसी समय से उपलब्ध है। विभिन्न स्रोतों, जैसे विकिपीडिया की “मृत्यु से युद्धों की सूची” के अनुसार, इतिहास में कम से कम 10,000 प्रमुख युद्ध और संघर्ष दर्ज किए गए हैं, जिनमें स्थानीय विद्रोह, गृहयुद्ध, और वैश्विक युद्ध शामिल हैं। यह संख्या अनुमानित है, क्योंकि कई छोटे संघर्षों का कोई रिकॉर्ड नहीं है। इस लेख में कुछ महत्वपूर्ण युद्धों का उल्लेख किया जाएगा, जिन्होंने मानव इतिहास को गहरे रूप से प्रभावित किया।
सबसे पहले, प्राचीन काल के युद्धों पर विचार करें। मेसोपोटामिया में सुमेरी शहर-राज्यों के बीच लगभग 2700 ईसा पूर्व से युद्धों के प्रमाण मिलते हैं। उदाहरण के लिए, लगाश और उम्मा शहर-राज्यों के बीच युद्ध (लगभग 2500 ईसा पूर्व) को इतिहास का पहला दर्ज युद्ध माना जाता है। इस युद्ध में हताहतों की संख्या का कोई सटीक रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन यह सीमा विवाद के कारण हुआ था। विजयी पक्ष, लगाश, ने उम्मा पर नियंत्रण स्थापित किया, और पराजित पक्ष को कर चुकाने के लिए मजबूर किया गया। इस युद्ध के बाद उम्मा का क्षेत्रीय प्रभाव कम हुआ, और लगाश ने अपनी सीमाओं का विस्तार किया। इस प्रकार के प्रारंभिक युद्धों में पराजित पक्ष के साथ अक्सर कठोर व्यवहार किया जाता था, जिसमें गुलामी, कर, या पूर्ण विनाश शामिल था।
प्राचीन मिस्र में भी युद्ध आम थे। नरमर, जो मिस्र के पहले फ़राओ माने जाते हैं, ने लगभग 3100 ईसा पूर्व में ऊपरी और निचले मिस्र को एकीकृत करने के लिए युद्ध लड़े। इन युद्धों में मृत्यु की संख्या का अनुमान नहीं है, लेकिन विजयी नरमर ने पराजित क्षेत्रों को अपने शासन के अधीन किया, जिससे मिस्र का पहला एकीकृत साम्राज्य बना। पराजित पक्षों को या तो आत्मसात कर लिया गया या उन्हें करदाता बनाया गया। सीमा परिवर्तन के रूप में, ऊपरी और निचले मिस्र की सीमाएँ एक हो गईं, जिसने मिस्र को एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में स्थापित किया।
प्राचीन भारत में भी युद्धों का इतिहास समृद्ध है। महाभारत, जो लगभग 1000 ईसा पूर्व का एक महाकाव्य है, कुरुक्षेत्र युद्ध का वर्णन करता है। यह युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया था। यद्यपि यह पौराणिक कथा है, लेकिन इतिहासकार इसे वास्तविक घटनाओं पर आधारित मानते हैं। इस युद्ध में लाखों योद्धाओं की मृत्यु का उल्लेख है, हालांकि सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। पांडव विजयी हुए, और कौरवों का लगभग पूर्ण विनाश हो गया। विजयी पांडवों ने हस्तिनापुर पर शासन स्थापित किया, लेकिन पराजित पक्ष के प्रति कोई विशेष दया नहीं दिखाई गई। इस युद्ध के बाद कुरु साम्राज्य की सीमाएँ पांडवों के नियंत्रण में आईं।
चीन में युद्धरत राज्य काल (475-221 ईसा पूर्व) में सात प्रमुख राज्यों (किन, ची, यान, झाओ, हान, वेई, और चू) के बीच सैकड़ों युद्ध लड़े गए। इन युद्धों में अनुमानित 10 मिलियन लोग मारे गए। किन राज्य ने अंततः 221 ईसा पूर्व में सभी राज्यों को जीतकर चीन को एकीकृत किया, और किन शी हुआंग ने पहला सम्राट बनकर शासन किया। पराजित राज्यों के शासकों को या तो मार दिया गया या उनके क्षेत्रों को किन साम्राज्य में मिला लिया गया। इस एकीकरण ने चीन की सीमाओं को पुनर्परिभाषित किया, जिससे एक विशाल साम्राज्य का निर्माण हुआ। पराजित पक्षों के साथ कठोर व्यवहार किया गया, जिसमें सामूहिक नरसंहार और निर्वासन शामिल था।
यूरोप में, प्राचीन ग्रीस के युद्ध भी उल्लेखनीय हैं। पेलोपोनेसियन युद्ध (431-404 ईसा पूर्व) एथेंस और स्पार्टा के बीच लड़ा गया। इस युद्ध में लगभग 100,000 लोग मारे गए। स्पार्टा विजयी हुआ, और एथेंस की शक्ति कमजोर हो गई। पराजित एथेंस को अपनी नौसेना भंग करने और स्पार्टा की अधीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया। इस युद्ध के बाद ग्रीस की राजनीतिक सीमाएँ बदलीं, और स्पार्टा का प्रभाव बढ़ा।
रोमन साम्राज्य के युद्धों ने भी विश्व इतिहास को गहरे रूप से प्रभावित किया। दूसरा प्यूनिक युद्ध (218-201 ईसा पूर्व) रोम और कार्थेज के बीच लड़ा गया। इस युद्ध में लगभग 700,000 लोग मारे गए, जिसमें कार्थेज के प्रसिद्ध सेनापति हन्निबाल की सेना शामिल थी। रोम विजयी हुआ, और कार्थेज को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया गया। पराजित पक्ष के साथ अत्यंत क्रूर व्यवहार किया गया; कार्थेज शहर को ध्वस्त कर दिया गया, और इसकी आबादी को गुलाम बनाया गया। इस युद्ध के बाद रोम ने भूमध्यसागर क्षेत्र में अपनी सीमाओं का विस्तार किया, जिसमें उत्तरी अफ्रीका और हिस्पानिया शामिल थे।
मध्यकाल में, मंगोल विजय (1206-1368) ने विश्व इतिहास पर गहरा प्रभाव डाला। चंगेज खान और उसके उत्तराधिकारियों ने एशिया, यूरोप, और मध्य पूर्व में विशाल क्षेत्रों पर कब्जा किया। इन युद्धों में अनुमानित 30-60 मिलियन लोग मारे गए। मंगोल विजयी हुए और पराजित क्षेत्रों में क्रूरता के साथ शासन किया, जिसमें सामूहिक नरसंहार और शहरों का विनाश शामिल था। उदाहरण के लिए, 1258 में बगदाद की घेराबंदी में लगभग 800,000 लोग मारे गए। मंगोल साम्राज्य ने यूरेशिया की सीमाओं को पुनर्परिभाषित किया, और कई क्षेत्रों में नए शासक वर्ग स्थापित किए गए। पराजित पक्षों को अक्सर करदाता बनाया गया या उनकी संस्कृति को मंगोल संस्कृति में आत्मसात किया गया।
भारत में मध्यकालीन युद्धों में तराइन का दूसरा युद्ध (1192) महत्वपूर्ण है। इस युद्ध में मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया, जिससे दिल्ली में मुस्लिम शासन की नींव पड़ी। हताहतों की संख्या का सटीक अनुमान नहीं है, लेकिन हजारों सैनिक मारे गए। पराजित राजपूतों को या तो मार दिया गया या उनके क्षेत्रों पर गोरी का नियंत्रण स्थापित हुआ। इस युद्ध के बाद उत्तर भारत की सीमाएँ बदल गईं, और दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई।
आधुनिक युग में, प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) और द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) सबसे विनाशकारी युद्ध थे। प्रथम विश्व युद्ध में लगभग 20 मिलियन लोग मारे गए, जिसमें 9 मिलियन सैनिक और 11 मिलियन नागरिक शामिल थे। मित्र राष्ट्र (ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, और बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका) विजयी हुए, जबकि केंद्रीय शक्तियाँ (जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, और ओटोमन साम्राज्य) पराजित हुईं। वर्साय संधि (1919) के तहत जर्मनी को कठोर शर्तों का सामना करना पड़ा, जिसमें क्षेत्रीय नुकसान, आर्थिक दंड, और सैन्य प्रतिबंध शामिल थे। इस युद्ध के बाद यूरोप की सीमाएँ बदलीं; ऑस्ट्रिया-हंगरी और ओटोमन साम्राज्य टूट गए, और नए देश जैसे पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया बने।
द्वितीय विश्व युद्ध में 60-72 मिलियन लोग मारे गए, जिसमें 25 मिलियन सैनिक और 35-47 मिलियन नागरिक शामिल थे। मित्र राष्ट्र (संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, और फ्रांस) विजयी हुए, जबकि अक्ष शक्तियाँ (जर्मनी, इटली, और जापान) पराजित हुईं। पराजित जर्मनी और जापान को कब्जे में लिया गया, और उनके नेताओं पर युद्ध अपराधों के लिए मुकदमा चलाया गया। याल्टा और पॉट्सडैम सम्मेलनों (1945) के बाद यूरोप और एशिया की सीमाएँ पुनर्परिभाषित की गईं। जर्मनी को पूर्व और पश्चिम जर्मनी में विभाजित किया गया, और सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप में कई क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित किया।
भारत-पाकिस्तान युद्ध (1947-48, 1965, 1971) भी आधुनिक इतिहास में महत्वपूर्ण हैं। 1947-48 के युद्ध में कश्मीर के मुद्दे पर लगभग 6,000-15,000 लोग मारे गए। भारत विजयी हुआ, लेकिन कश्मीर का एक हिस्सा (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) पाकिस्तान के नियंत्रण में रहा। पराजित पक्ष के साथ कोई विशेष क्रूरता नहीं की गई, लेकिन सीमा विवाद आज भी जारी है। 1971 के युद्ध में भारत ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को स्वतंत्र कराया, जिसमें लगभग 1-3 मिलियन लोग मारे गए। पाकिस्तान पराजित हुआ, और 93,000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। भारत ने इन सैनिकों को युद्धबंदी के रूप में मानवीय व्यवहार के साथ रखा और बाद में वापस भेजा। इस युद्ध के बाद बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बना।
युद्धों के बाद सीमा परिवर्तन मानव इतिहास का एक अभिन्न हिस्सा रहे हैं। उदाहरण के लिए, नेपोलियनिक युद्धों (1803-1815) के बाद यूरोप की सीमाएँ वियना कांग्रेस (1815) में पुनर्गठित की गईं, जिसमें फ्रांस ने कई क्षेत्र खो दिए। इसी तरह, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्धों के बाद यूरोप, अफ्रीका, और एशिया में नए राष्ट्र बने और पुराने साम्राज्य टूट गए। भारत में, 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिश राज ने पूरे भारत पर प्रत्यक्ष शासन स्थापित किया, जिसने स्थानीय रियासतों की सीमाओं को प्रभावित किया।
युद्धों के प्रभाव केवल हताहतों और सीमा परिवर्तनों तक सीमित नहीं हैं। इनका सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक प्रभाव भी गहरा रहा है। उदाहरण के लिए, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र की स्थापना (1945) हुई, जिसका उद्देश्य भविष्य में वैश्विक युद्धों को रोकना था। हालांकि, इसके बावजूद कोरियाई युद्ध (1950-1953), वियतनाम युद्ध (1945-1975), और हाल के अफगानिस्तान (2001-2021) और इराक (2003-2011) युद्धों ने मानवता को प्रभावित किया। इन युद्धों में लाखों लोग मारे गए, और सीमा परिवर्तनों के साथ-साथ वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव आया।
उपरोक्त वर्णित युद्धो के अतिरिक्त कुछ अन्य युद्ध निम्नलिखित है:
हाइडेस्पस का युद्ध (326 ईसा पूर्व):
यह युद्ध मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के उदय से पहले, सिकंदर महान और पंजाब के राजा पोरस (पुरु) के बीच झेलम नदी (वर्तमान पाकिस्तान) के तट पर लड़ा गया। इस युद्ध में लगभग 20,000-30,000 सैनिक मारे गए, जिसमें पोरस की सेना को भारी नुकसान हुआ। सिकंदर विजयी हुआ, लेकिन पोरस की वीरता से प्रभावित होकर उसे उसका राज्य वापस कर दिया गया। पराजित पक्ष के साथ सम्मानजनक व्यवहार किया गया, और पोरस को सिकंदर का सहयोगी बनाया गया। इस युद्ध के बाद सिकंदर ने भारत में अपनी सीमाओं का विस्तार किया, लेकिन उसकी सेना की थकान के कारण वह आगे नहीं बढ़ सका। सीमा परिवर्तन सीमित रहे, क्योंकि सिकंदर जल्द ही भारत छोड़कर चला गया।
कन्नौज का युद्ध (1194):
यह युद्ध मुहम्मद गोरी और गहड़वाल राजा जयचंद के बीच लड़ा गया। तराइन के दूसरे युद्ध (1192) के बाद गोरी ने उत्तर भारत में अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए कन्नौज पर आक्रमण किया। इस युद्ध में लगभग 50,000 सैनिक मारे गए। गोरी विजयी हुआ, और जयचंद की हार ने गहड़वाल वंश का अंत कर दिया। पराजित पक्ष के साथ कठोर व्यवहार किया गया; जयचंद को मार दिया गया, और उसके क्षेत्र को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया। इस युद्ध ने उत्तर भारत की सीमाओं को पुनर्परिभाषित किया, और दिल्ली सल्तनत का विस्तार हुआ।
खानवा का युद्ध (1527):
यह युद्ध मुगल सम्राट बाबर और मेवाड़ के राणा सांगा के नेतृत्व में राजपूत संघ के बीच लड़ा गया। पानीपत के पहले युद्ध (1526) के बाद बाबर ने भारत में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए यह युद्ध लड़ा। इसमें लगभग 30,000-40,000 सैनिक मारे गए। बाबर विजयी हुआ, और राजपूत शक्ति कमजोर हुई। पराजित राजपूतों के साथ कोई विशेष क्रूरता नहीं दिखाई गई, लेकिन उनके कई क्षेत्र मुगल नियंत्रण में चले गए। इस युद्ध ने मुगल साम्राज्य की सीमाओं को राजस्थान तक विस्तृत किया।
चंदेरी का युद्ध (1528):
बाबर और मेदिनी राय के बीच मध्य भारत में लड़ा गया यह युद्ध मुगल साम्राज्य के विस्तार के लिए महत्वपूर्ण था। इसमें लगभग 20,000 लोग मारे गए। बाबर ने विजय प्राप्त की, और मेदिनी राय की हार के बाद चंदेरी मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया। पराजित पक्ष के साथ क्रूर व्यवहार हुआ; कई राजपूत योद्धाओं ने जौहर किया। इस युद्ध ने मध्य भारत में मुगल सीमाओं का विस्तार किया।
घाघरा का युद्ध (1529):
बाबर और पूर्वी भारत के अफगान शासकों के बीच लड़ा गया यह युद्ध मुगल साम्राज्य की स्थापना के लिए निर्णायक था। इसमें लगभग 15,000-20,000 लोग मारे गए। बाबर विजयी हुआ, और अफगान शक्ति कमजोर हुई। पराजित अफगानों को या तो मार दिया गया या उनके क्षेत्र मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिए गए। इस युद्ध ने बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश को मुगल सीमाओं में शामिल किया।
तालीकोटा का युद्ध (1565):
यह युद्ध विजयनगर साम्राज्य और दक्कन सल्तनतों (बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर, और बीदर) के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 100,000 लोग मारे गए। दक्कन सल्तनतें विजयी हुईं, और विजयनगर साम्राज्य का पतन हो गया। पराजित विजयनगर के शासक रामराय को मार दिया गया, और शहर को लूटा गया। इस युद्ध ने दक्षिण भारत की सीमाओं को पुनर्गठित किया, और दक्कन सल्तनतों का प्रभाव बढ़ा।
हल्दीघाटी का युद्ध (1576):
यह युद्ध मुगल सम्राट अकबर और मेवाड़ के महाराणा प्रताप के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 20,000-30,000 लोग मारे गए। तकनीकी रूप से अकबर विजयी रहा, लेकिन महाराणा प्रताप ने गुरिल्ला युद्ध जारी रखा। पराजित पक्ष के साथ कोई विशेष क्रूरता नहीं दिखाई गई, क्योंकि प्रताप युद्ध के बाद बच निकले। इस युद्ध का सीमा परिवर्तन पर सीमित प्रभाव पड़ा, क्योंकि मेवाड़ का अधिकांश हिस्सा मुगल नियंत्रण में नहीं आया।
प्लासी का युद्ध (1757):
यह युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 2,000-3,000 लोग मारे गए। ब्रिटिश सेना, रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में, विजयी हुई। सिराजुद्दौला को मार दिया गया, और बंगाल में ब्रिटिश शासन की नींव पड़ी। पराजित पक्ष के साथ क्रूर व्यवहार हुआ; नवाब के परिवार को कैद किया गया। इस युद्ध ने बंगाल को ब्रिटिश नियंत्रण में लाकर भारत में औपनिवेशिक सीमाओं का विस्तार किया।
वांडीवाश का युद्ध (1760):
यह तीसरा कर्नाटक युद्ध का हिस्सा था, जो ब्रिटिश और फ्रांसीसी सेनाओं के बीच दक्षिण भारत में लड़ा गया। इसमें लगभग 5,000 लोग मारे गए। ब्रिटिश विजयी हुए, और फ्रांसीसी प्रभाव दक्षिण भारत में समाप्त हो गया। पराजित फ्रांसीसी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया, लेकिन उनके साथ मानवीय व्यवहार किया गया। इस युद्ध ने दक्षिण भारत में ब्रिटिश सीमाओं को मजबूत किया।
पानीपत का तीसरा युद्ध (1761):
यह युद्ध मराठों और अहमद शाह अब्दाली के नेतृत्व में अफगानों के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 100,000-150,000 लोग मारे गए, जो भारतीय इतिहास के सबसे घातक युद्धों में से एक है। अब्दाली विजयी हुआ, और मराठा शक्ति कमजोर हुई। पराजित मराठों के साथ कोई विशेष क्रूरता नहीं दिखाई गई, लेकिन उनकी सैन्य शक्ति को भारी नुकसान हुआ। इस युद्ध ने उत्तर भारत में मराठा सीमाओं को सिकोड़ दिया और अफगान प्रभाव को बढ़ाया।
बक्सर का युद्ध (1764):
यह युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मुगल सम्राट शाह आलम II, अवध के नवाब, और बंगाल के मीर कासिम के गठबंधन के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 10,000 लोग मारे गए। ब्रिटिश विजयी हुए, और इसने भारत में ब्रिटिश शासन की नींव को और मजबूत किया। पराजित पक्ष को कर देने के लिए मजबूर किया गया, और शाह आलम II को ब्रिटिश संरक्षण में रखा गया। इस युद्ध ने बंगाल, बिहार, और उड़ीसा की सीमाओं को ब्रिटिश नियंत्रण में लाया।
प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782):
यह युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 20,000 लोग मारे गए। युद्ध सल्बाई की संधि (1782) के साथ समाप्त हुआ, जिसमें कोई स्पष्ट विजेता नहीं था। पराजित पक्ष के साथ कोई कठोर व्यवहार नहीं किया गया, और मराठों ने अपने अधिकांश क्षेत्र बरकरार रखे। इस युद्ध का सीमा परिवर्तन पर सीमित प्रभाव पड़ा।
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-1769):
यह युद्ध हैदर अली के नेतृत्व में मैसूर और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 10,000 लोग मारे गए। मैसूर विजयी रहा, और ब्रिटिशों को पीछे हटना पड़ा। पराजित ब्रिटिश सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया, लेकिन उनके साथ मानवीय व्यवहार किया गया। इस युद्ध ने मैसूर की सीमाओं को मजबूत किया।
प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध (1845-1846):
यह युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और सिख साम्राज्य के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 30,000 लोग मारे गए। ब्रिटिश विजयी हुए, और सिख साम्राज्य कमजोर हुआ। पराजित सिखों को लाहौर की संधि (1846) के तहत क्षेत्रीय नुकसान और सैन्य प्रतिबंध स्वीकार करने पड़े। इस युद्ध ने पंजाब की सीमाओं को ब्रिटिश नियंत्रण में लाया।
दूसरा आंग्ल-सिख युद्ध (1848-1849):
यह युद्ध ब्रिटिश और सिख साम्राज्य के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 20,000 लोग मारे गए। ब्रिटिश विजयी हुए, और सिख साम्राज्य का पूर्ण अंत हो गया। पराजित सिखों के साथ कठोर व्यवहार किया गया; पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया। इस युद्ध ने पंजाब की सीमाओं को ब्रिटिश भारत का हिस्सा बनाया।
सौ वर्षीय युद्ध (1337-1453):
यह युद्ध इंग्लैंड और फ्रांस के बीच कई चरणों में लड़ा गया। इसमें लगभग 2-3 मिलियन लोग मारे गए। फ्रांस अंततः विजयी हुआ, और इंग्लैंड को फ्रांस से अपने अधिकांश क्षेत्र खोने पड़े। पराजित इंग्लिश सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया, और कई को छुड़ौती के लिए रखा गया। इस युद्ध ने फ्रांस की सीमाओं को पुनर्स्थापित किया और इंग्लैंड का यूरोपीय प्रभाव कम हुआ।
तीस वर्षीय युद्ध (1618-1648):
यह युद्ध यूरोप में धार्मिक और राजनीतिक कारणों से लड़ा गया, जिसमें स्वीडन, फ्रांस, और प्रोटेस्टेंट शक्तियाँ कैथोलिक हैब्सबर्ग के खिलाफ थीं। इसमें लगभग 8 मिलियन लोग मारे गए। प्रोटेस्टेंट गठबंधन विजयी रहा, और वेस्टफेलिया की संधि (1648) ने युद्ध समाप्त किया। पराजित पक्ष के साथ अपेक्षाकृत उदार व्यवहार किया गया, और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा दिया गया। इस युद्ध ने यूरोप की सीमाओं को पुनर्गठित किया, और कई नए स्वतंत्र राज्य बने।
नेपोलियन युद्ध (1803-1815):
यह युद्ध नेपोलियन बोनापार्ट के फ्रांस और विभिन्न यूरोपीय गठबंधनों के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 4-6 मिलियन लोग मारे गए। मित्र राष्ट्र (ब्रिटेन, रूस, प्रशिया, और ऑस्ट्रिया) विजयी हुए, और नेपोलियन को निर्वासित किया गया। पराजित फ्रांसीसी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया, और फ्रांस पर कठोर शर्तें थोपी गईं। वियना कांग्रेस (1815) ने यूरोप की सीमाओं को पुनर्परिभाषित किया।
कोरियाई युद्ध (1950-1953):
यह युद्ध उत्तर कोरिया (चीन और सोवियत समर्थन के साथ) और दक्षिण कोरिया (संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका के समर्थन के साथ) के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 2-3 मिलियन लोग मारे गए। युद्ध पनमुनjom आर्मिस्टिस (1953) के साथ समाप्त हुआ, जिसमें कोई स्पष्ट विजेता नहीं था। पराजित पक्षों के साथ युद्धबंदियों का आदान-प्रदान किया गया। इस युद्ध ने कोरियाई प्रायद्वीप को दो देशों (उत्तर और दक्षिण कोरिया) में विभाजित किया।
वियतनाम युद्ध (1955-1975):
यह युद्ध उत्तर वियतनाम (कम्युनिस्ट) और दक्षिण वियतनाम (अमेरिका समर्थित) के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 1.3-3.5 मिलियन लोग मारे गए। उत्तर वियतनाम विजयी हुआ, और दक्षिण वियतनाम का पतन हुआ। पराजित दक्षिण वियतनामी सैनिकों को कैद किया गया, और कई को पुनर्वास शिविरों में भेजा गया। इस युद्ध ने वियतनाम को एकीकृत किया, और कम्युनिस्ट शासन स्थापित हुआ।
यरमूक का युद्ध (636):
यह युद्ध राशिदुन खलीफा की सेना और बीजान्टिन साम्राज्य के बीच सीरिया में लड़ा गया। इसमें लगभग 70,000 लोग मारे गए, जिसमें बीजान्टिन सेना को भारी नुकसान हुआ। राशिदुन खलीफा विजयी रहा, जिसने सीरिया पर अरब नियंत्रण स्थापित किया। पराजित बीजान्टिन सैनिकों को या तो मार दिया गया या निर्वासित किया गया। इस युद्ध ने सीरिया और लेवांत की सीमाओं को अरब खलीफा के अधीन लाया।
कादिसिया का युद्ध (636):
यह युद्ध राशिदुन खलीफा और सासानी साम्राज्य के बीच इराक में लड़ा गया। इसमें लगभग 30,000 लोग मारे गए। अरब सेना विजयी हुई, और सासानी साम्राज्य की शक्ति कमजोर हुई। पराजित सासानी सैनिकों को मार दिया गया या गुलाम बनाया गया। इस युद्ध ने मेसोपोटामिया की सीमाओं को अरब नियंत्रण में लाया।
अज्नादैन का युद्ध (634):
यह युद्ध राशिदुन खलीफा और बीजान्टिन साम्राज्य के बीच फिलिस्तीन में लड़ा गया। इसमें लगभग 20,000 लोग मारे गए। अरब सेना विजयी हुई, और बीजान्टिनों को फिलिस्तीन से पीछे हटना पड़ा। पराजित पक्ष के साथ कठोर व्यवहार हुआ, और कई सैनिक मारे गए। इस युद्ध ने फिलिस्तीन की सीमाओं को अरब खलीफा के अधीन किया।
नहावंद का युद्ध (642):
यह युद्ध राशिदुन खलीफा और सासानी साम्राज्य के बीच ईरान में लड़ा गया। इसमें लगभग 40,000 लोग मारे गए। अरब सेना ने सासानी साम्राज्य को पूरी तरह नष्ट कर दिया। पराजित सासानी सैनिकों को मार दिया गया या गुलाम बनाया गया। इस युद्ध ने फारस की सीमाओं को अरब साम्राज्य में मिला दिया।
सिफिन का युद्ध (657):
यह युद्ध खलीफा अली और मुआविया के बीच सीरिया में लड़ा गया। इसमें लगभग 70,000 लोग मारे गए। युद्ध अनिर्णायक रहा, लेकिन मुआविया ने बाद में खलीफा बनकर शासन किया। पराजित पक्ष के साथ कोई विशेष क्रूरता नहीं दिखाई गई। इस युद्ध का सीमा परिवर्तन पर सीमित प्रभाव पड़ा।
कर्बला का युद्ध (680):
यह युद्ध उमय्यद खलीफा यजीद I और हुसैन इब्न अली के बीच इराक में लड़ा गया। इसमें लगभग 100 लोग मारे गए, जिसमें हुसैन और उनके अनुयायी शामिल थे। उमय्यद विजयी रहे, और हुसैन के समर्थकों को क्रूरता से मार दिया गया। इस युद्ध ने शिया-सुन्नी विभाजन को गहरा किया, लेकिन सीमा परिवर्तन नहीं हुआ।
टूलूज़ का युद्ध (721):
यह युद्ध उमय्यद खलीफा और एक्विटेन के ड्यूक ओडो के बीच फ्रांस में लड़ा गया। इसमें लगभग 10,000 लोग मारे गए। ओडो विजयी रहा, और उमय्यद सेना को पीछे हटना पड़ा। पराजित अरब सैनिकों को मार दिया गया। इस युद्ध ने उमय्यद के यूरोप में विस्तार को रोका।
टूर्स का युद्ध (732):
यह युद्ध उमय्यद खलीफा और फ्रैंकिश नेता चार्ल्स मार्टेल के बीच फ्रांस में लड़ा गया। इसमें लगभग 12,000 लोग मारे गए। फ्रैंक विजयी रहे, और अरब सेना को यूरोप से पीछे हटना पड़ा। पराजित पक्ष के साथ कठोर व्यवहार हुआ। इस युद्ध ने यूरोप में इस्लामी विस्तार को रोका।
ज़ल्लाका का युद्ध (1086):
यह युद्ध अल्मोराविद और कैस्टिल के बीच स्पेन में लड़ा गया। इसमें लगभग 10,000 लोग मारे गए। अल्मोराविद विजयी रहे, और कैस्टिल की सेना को भारी नुकसान हुआ। पराजित पक्ष के सैनिकों को मार दिया गया। इस युद्ध ने इबेरियन प्रायद्वीप में मुस्लिम शक्ति को मजबूत किया।
लास नावास दे तोलोसा का युद्ध (1212):
यह युद्ध अल्मोहद खलीफा और ईसाई गठबंधन (कैस्टिल, अरागोन, और नवार) के बीच स्पेन में लड़ा गया। इसमें लगभग 60,000 लोग मारे गए। ईसाई गठबंधन विजयी रहा, और अल्मोहद की शक्ति कमजोर हुई। पराजित पक्ष के साथ कठोर व्यवहार हुआ। इस युद्ध ने स्पेन में ईसाई पुनर्विजय को गति दी।
हट्टीन का युद्ध (1187):
यह युद्ध सलाहुद्दीन अय्यूबी और क्रूसेडरों के बीच फिलिस्तीन में लड़ा गया। इसमें लगभग 20,000 लोग मारे गए। सलाहुद्दीन विजयी रहा, और यरूशलेम पर कब्जा कर लिया। पराजित क्रूसेडरों को युद्धबंदी बनाया गया, और कुछ को छुड़ौती के लिए रखा गया। इस युद्ध ने यरूशलेम को मुस्लिम नियंत्रण में लाया।
अर्सुफ का युद्ध (1191):
यह तीसरे धर्मयुद्ध के दौरान सलाहुद्दीन और रिचर्ड द लायनहार्ट के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 10,000 लोग मारे गए। क्रूसेडर विजयी रहे। पराजित अय्यूबिद सैनिकों को मार दिया गया। इस युद्ध का सीमा परिवर्तन पर सीमित प्रभाव पड़ा।
मंज़िकेर्ट का युद्ध (1071):
यह युद्ध सेल्जूक तुर्क और बीजान्टिन साम्राज्य के बीच तुर्की में लड़ा गया। इसमें लगभग 20,000 लोग मारे गए। सेल्जूक विजयी रहे, और बीजान्टिन साम्राज्य कमजोर हुआ। पराजित सैनिकों को गुलाम बनाया गया। इस युद्ध ने अनातोलिया की सीमाओं को सेल्जूक नियंत्रण में लाया।
डोरिलायम का युद्ध (1097):
यह प्रथम धर्मयुद्ध के दौरान क्रूसेडरों और सेल्जूक तुर्कों के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 10,000 लोग मारे गए। क्रूसेडर विजयी रहे। पराजित तुर्क सैनिकों को मार दिया गया। इस युद्ध ने क्रूसेडरों को अनातोलिया में आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया।
लेंगनिके का युद्ध (1241):
यह युद्ध मंगोलों और पोलिश-जर्मन गठबंधन के बीच पोलैंड में लड़ा गया। इसमें लगभग 40,000 लोग मारे गए। मंगोल विजयी रहे। पराजित पक्ष के साथ क्रूर व्यवहार हुआ, और कई सैनिक मारे गए। इस युद्ध का सीमा परिवर्तन पर सीमित प्रभाव पड़ा।
अल्जुबरोटा का युद्ध (1385):
यह युद्ध पुर्तगाल और कैस्टिल के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 7,000 लोग मारे गए। पुर्तगाल विजयी रहा, और उसकी स्वतंत्रता बरकरार रही। पराजित कैस्टिल सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया। इस युद्ध ने पुर्तगाल की सीमाओं को सुरक्षित किया।
कुलिकोवो का युद्ध (1380):
यह युद्ध रूस और गोल्डन होर्डे के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 50,000 लोग मारे गए। रूस विजयी रहा, जिसने मंगोल प्रभुत्व को कमजोर किया। पराजित मंगोल सैनिकों को मार दिया गया। इस युद्ध ने रूस की सीमाओं को मजबूत किया।
कोसोवो का युद्ध (1389):
यह युद्ध ओटोमन तुर्क और सर्बियाई गठबंधन के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 30,000 लोग मारे गए। ओटोमन विजयी रहे। पराजित सर्बियाई सैनिकों को मार दिया गया। इस युद्ध ने बाल्कन में ओटोमन सीमाओं का विस्तार किया।
अंजीरा का युद्ध (1415):
यह युद्ध इंग्लैंड और फ्रांस के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 10,000 लोग मारे गए। इंग्लैंड विजयी रहा। पराजित फ्रांसीसी सैनिकों को मार दिया गया। इस युद्ध ने उत्तरी फ्रांस में इंग्लिश नियंत्रण को बढ़ाया।
वार्ना का युद्ध (1444):
यह युद्ध ओटोमन तुर्क और क्रूसेडर गठबंधन के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 20,000 लोग मारे गए। ओटोमन विजयी रहे। पराजित क्रूसेडरों को मार दिया गया। इस युद्ध ने बाल्कन में ओटोमन शक्ति को मजबूत किया।
कॉन्स्टेंटिनोपल का पतन (1453):
यह युद्ध ओटोमन तुर्क और बीजान्टिन साम्राज्य के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 10,000 लोग मारे गए। ओटोमन विजयी रहे, और कॉन्स्टेंटिनोपल पर कब्जा कर लिया। पराजित बीजान्टिनों को मार दिया गया या गुलाम बनाया गया। इस युद्ध ने बीजान्टिन साम्राज्य का अंत किया और ओटोमन सीमाओं का विस्तार किया।
बोसवर्थ का युद्ध (1485):
यह युद्ध इंग्लैंड में रिचर्ड III और हेनरी ट्यूडर के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 5,000 लोग मारे गए। हेनरी ट्यूडर विजयी रहा, और ट्यूडर राजवंश की स्थापना हुई। पराजित रिचर्ड III को मार दिया गया। इस युद्ध का सीमा परिवर्तन पर सीमित प्रभाव पड़ा।
लेपांतो का युद्ध (1571):
यह युद्ध पवित्र लीग (स्पेन, वेनिस, और पोप) और ओटोमन साम्राज्य के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 40,000 लोग मारे गए। पवित्र लीग विजयी रहा। पराजित ओटोमन सैनिकों को मार दिया गया। इस युद्ध ने भूमध्यसागर में ओटोमन नौसैनिक शक्ति को कमजोर किया।
वियना की घेराबंदी (1529):
यह युद्ध ओटोमन तुर्क और हैब्सबर्ग साम्राज्य के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 20,000 लोग मारे गए। हैब्सबर्ग विजयी रहे। पराजित ओटोमन सैनिकों को पीछे हटना पड़ा। इस युद्ध ने यूरोप में ओटोमन विस्तार को रोका।
वियना की दूसरी घेराबंदी (1683):
यह युद्ध ओटोमन तुर्क और पवित्र रोमन साम्राज्य के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 30,000 लोग मारे गए। पवित्र रोमन साम्राज्य विजयी रहा। पराजित ओटोमन सैनिकों को मार दिया गया। इस युद्ध ने यूरोप में ओटोमन शक्ति को कमजोर किया।
क्रीमी युद्ध (1853-1856):
यह युद्ध रूस और ओटोमन साम्राज्य, ब्रिटेन, फ्रांस के गठबंधन के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 500,000 लोग मारे गए। मित्र राष्ट्र विजयी रहे। पराजित रूसी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया। इस युद्ध ने काला सागर क्षेत्र में रूसी प्रभाव को कम किया।
ज़ुलु युद्ध (1879):
यह युद्ध ब्रिटिश साम्राज्य और ज़ुलु साम्राज्य के बीच दक्षिण अफ्रीका में लड़ा गया। इसमें लगभग 20,000 लोग मारे गए। ब्रिटिश विजयी रहे। पराजित ज़ुलु सैनिकों को मार दिया गया या निर्वासित किया गया। इस युद्ध ने ज़ुलुलैंड को ब्रिटिश नियंत्रण में लाया।
महदी विद्रोह (1881-1899):
यह युद्ध सूडान में महदी के नेतृत्व में सूडानी विद्रोहियों और ब्रिटिश-मिस्र गठबंधन के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 100,000 लोग मारे गए। ब्रिटिश-मिस्र गठबंधन विजयी रहा। पराजित सूडानी विद्रोहियों को मार दिया गया। इस युद्ध ने सूडान को ब्रिटिश नियंत्रण में लाया।
तेल-अल-कबीर का युद्ध (1882):
यह युद्ध ब्रिटिश सेना और अरबी पाशा के नेतृत्व में मिस्र की सेना के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 10,000 लोग मारे गए। ब्रिटिश विजयी रहे। पराजित अरबी पाशा को निर्वासित किया गया। इस युद्ध ने मिस्र को ब्रिटिश नियंत्रण में लाया।
प्रथम इटालो-इथियोपियाई युद्ध (1895-1896):
यह युद्ध इटली और इथियोपिया के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 17,000 लोग मारे गए। इथियोपिया विजयी रहा। पराजित इटालियनों को पीछे हटना पड़ा। इस युद्ध ने इथियोपिया की स्वतंत्रता बरकरार रखी।
प्रथम बोअर युद्ध (1880-1881):
यह युद्ध ब्रिटिश साम्राज्य और ट्रांसवाल बोअर के बीच दक्षिण अफ्रीका में लड़ा गया। इसमें लगभग 2,000 लोग मारे गए। बोअर विजयी रहे। पराजित ब्रिटिश सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया। इस युद्ध ने ट्रांसवाल की स्वतंत्रता को बहाल किया।
दूसरा बोअर युद्ध (1899-1902):
यह युद्ध ब्रिटिश साम्राज्य और बोअर गणराज्यों के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 75,000 लोग मारे गए। ब्रिटिश विजयी रहे। पराजित बोअर सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया, और कई नागरिकों को शिविरों में रखा गया। इस युद्ध ने दक्षिण अफ्रीका को ब्रिटिश नियंत्रण में लाया।
रूसो-जापानी युद्ध (1904-1905):
यह युद्ध रूस और जापान के बीच लड़ा गया, जिसमें यूरोपीय शक्ति रूस शामिल थी। इसमें लगभग 130,000 लोग मारे गए। जापान विजयी रहा। पराजित रूसी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया। इस युद्ध ने मंचूरिया और कोरिया में रूसी प्रभाव को कम किया।
बाल्कन युद्ध (1912-1913):
यह युद्ध बाल्कन लीग और ओटोमन साम्राज्य के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 200,000 लोग मारे गए। बाल्कन लीग विजयी रही। पराजित ओटोमन सैनिकों को पीछे हटना पड़ा। इस युद्ध ने बाल्कन में ओटोमन सीमाओं को सिकोड़ दिया।
स्पेनिश गृहयुद्ध (1936-1939):
यह युद्ध स्पेन में रिपब्लिकनों और राष्ट्रवादियों के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 500,000 लोग मारे गए। राष्ट्रवादी विजयी रहे। पराजित रिपब्लिकनों को मार दिया गया या निर्वासित किया गया। इस युद्ध का सीमा परिवर्तन पर सीमित प्रभाव पड़ा।
दूसरा इटालो-इथियोपियाई युद्ध (1935-1936):
यह युद्ध इटली और इथियोपिया के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 200,000 लोग मारे गए। इटली विजयी रहा। पराजित इथियोपियाई सैनिकों को मार दिया गया या गुलाम बनाया गया। इस युद्ध ने इथियोपिया को इटालियाई नियंत्रण में लाया।
अल्जियर्स का युद्ध (1954-1962):
यह युद्ध फ्रांस और अल्जियाई स्वतंत्रता सेनानियों के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 1.5 मिलियन लोग मारे गए। अल्जियाई स्वतंत्रता सेनानी विजयी रहे। पराजित फ्रांसीसी सैनिकों को वापस बुलाया गया। इस युद्ध ने अल्जीरिया को स्वतंत्रता दिलाई।
सूडान गृहयुद्ध (1955-1972):
यह प्रथम सूडानी गृहयुद्ध सूडान सरकार और दक्षिणी विद्रोहियों के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 500,000 लोग मारे गए। युद्ध समझौते के साथ समाप्त हुआ। पराजित पक्ष के साथ शांति वार्ता हुई। इस युद्ध ने दक्षिण सूडान को सीमित स्वायत्तता दी।
कांगो संकट (1960-1965):
यह युद्ध कांगो में विभिन्न गुटों और विदेशी शक्तियों के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 100,000 लोग मारे गए। कांगो सरकार विजयी रही। पराजित विद्रोहियों को मार दिया गया। इस युद्ध का सीमा परिवर्तन पर सीमित प्रभाव पड़ा।
नाइजीरिया-बियाफ्रा युद्ध (1967-1970): यह युद्ध नाइजीरिया और बियाफ्रा के बीच लड़ा गया। इसमें लगभग 1-3 मिलियन लोग मारे गए। नाइजीरिया विजयी रहा। पराजित बियाफ्रानों को आत्मसमर्पण करना पड़ा। इस युद्ध ने बियाफ्रा की स्वतंत्रता को समाप्त किया।